सखी हे बसुरी बेधल वाने
यमुना तट पर गाछ कदम्वक
तइ पर क्यौ बजबथि बसुरी
सखि हे बसुरी बेधल वाने ।
लएलए गागरि आयलि युवजनि
वंसुरिक सुर —सुनी मोहित सवधनि ।
क्यो वैसलि क्यो ठाढे ठकवक
सुधि—वुधि विसरी पिवए रस मधुरी ।
सखी हे सभहक पाथल काने
सखि हे बसुरी बेधल वाने ?
कहलि विशाखा—करी छवि छाहर ?
केहेन रुप, छवि, केहन नाहर ?
केहन बसुरी ? केहन पोरक ?
जे सुनि कए हारलि सभ चतुरी
सखि हे की ! छनि हँुनक वाने ।
राधा वजली —सुनह विशाखा
के जानत ओ वसुरिक भाषा ?
हम त अपनहिँ वेसुधि व्याकुलि आवि
आवि वाटहिं वाट घुरी ।
सखि हे के वुझत् अनुमाने
सखि हे बसुरी वेधल वाने
पाखि मयूरक बान्हले माथा
पीयर कछनी कटि पर काछा
पीत वस्त्र कुंचित लट—लटकल
नव जलन्धर रंग ऐल घुमरल
सखि हे, निरवस तन मन प्राणे
सखि हे वसुरी वेधल वाने ।
कहलि विशाखा —सुनु हे राधे,
तोरे ध्याने से धुनी साधे, तोहीं !
उमरलि कृष्णक प्राणे
तोरे नां वेरी वेरी सुमरी
सखि हे तो होऊह संज्ञाने
सखि हे ! वसुरी वेधल वाने ।