महाभारतक पात्रक प्रतीकात्मकता

शिवचन्द्र कंठ

“महाभारतक पात्रक प्रतीकात्मकता” सम्बन्ध मे लिखबाक अवधारणा बनएबाक संगहि मानसपटल पर एकटा प्रश्न कम्पित होबए लागल । महाभारत हिन्दूस सम्बन्धित महाग्रन्थ अछि । प्रश्न छल जे हिन्दू धर्म अछि अथवा संस्कृति ? हिन्दू धर्म अछि अथवा संस्कृति ई गहन विवादक विषय वस्तु अछि । अहि सम्बन्ध मे भिन्नभिन्न विचारधारा प्रस्तुत कएल जाए सकैत अछि परचं एकमत हाएब सम्भव नहिं अछि । वैचारिक मतभिन्नता कायम रहब स्वभाविक अछि ।

हमर मान्यता अछि हिन्दू, मुस्लिम, क्रिश्चियन आदि धर्म नहि भ क संस्कृति अछि अर्थात् जीवन यापनक अर्चना, ईश्वर आराधना आदि संस्कृतिक अंग छैक । किछु पद्धति परम्परा बनि जाईत छैक जे करा समाजक उन्नति आ कल्याणक हेतु समयसमय पर मूल्यांकन कए आवश्कता अनुसार सुधार करब आवश्यक होइत छैक । समाजक मनीषी लोकन्हि समाजके दिशानिर्देश देबाक हेतु बिभिन्न ग्रन्थक र चना कएलथि जाहिमे मानव धर्म सम्बन्धी ज्ञान आ जीवनक बहु–आयामी उपदेश अछि । महाभारत से हो अहि उद्धेश्यस लिखल गेल एक महान ग्रन्थ अछि ।

भिन्न भिन्न देश आ परिस्थिति मे रहि रहल भिन्न–भिन्न मानव के भिन्न–भिन्न धर्म नहि भ सकै त अछि । सम्पूर्ण मानव के धर्म एक छैक् आ वो अछि – परोपकार। एहि बातक पुष्टि महाभारत ग्रन्थक रचियता महर्षि व्यास से हो कएने छथि ।

अष्टादश पुराणेसु व्यासस्य वचनद्वयम ।

परोपकारस्पुण्याय पापाय परपीडनम ।।

महाभारत एकटा बहु–आयामी महान् ग्रन्थ अछि । बहुतो मनीषी महाभारतके बिभिन्न ढंग स व्याख्या आ टिप्पणी कएने छथि । महाभारतके बझबाक दृष्टिकोण फरक भ सकैत अछि परंच सभ सटीक आ विलक्षन छैक । महाभारत मे मानव जीवनके प्रत्येक आयामक सटीक प्रस्तुती कएल गेल छैक । महाभारत महाग्रन्थ भेलाक कारणे अहिमे पात्रक प्रचुरता से हो अत्यधिक अछि । हम सभ बहुत पात्र सभस सुपरिचित छी । महाभारतक सभ पात्र प्रतीकात्मक विशेष गुण स सम्पन्न छथि आ सभ अपन–अपन प्रतीकात्मक गुण अनुसारे रंगमंचन कएने छथि । सभ पात्रके प्रतीकात्मक स्वरुपक विवरण उल्लेख करब सम्भव नहि अछि ताहि स मुख्य पात्र सभक प्रतीकात्मक विवरण प्रस्तुत अछि ।

१) शन्तनु – प्रतीकरुप स परब्रह्मस सृष्टिकर्ता परमेश्वर ।

२) गंगा (शान्तनुक प्रथम पत्नी) – प्रकृतिस चेतनास बुद्धिस पवित्र आत्मा के रुप मे ईश्वरक चेतना

३) गंगाक सात पुत्र ( क) प्रथम पुत्र – कुटस्थ चेतना अर्थात् अपरिवर्तनीय ब्रह्म ।

ख) छ पुत्र – छः प्रज्ञास कारण, सूक्षम आ भौतिक ब्रह्माण्डक अभिव्यक्ति तीनू जगत के संचालन कारक ।

नोट : गंगा अपन सात पुत्र के जल मे समाहित कएने छलिह ताहि स ब्रह्मा के सात प्रज्ञा के सामान्य चेतना मे अनुभूति नहि कएल जा सकैत अछि।

४) भिष्म (गंगाके आठम पुत्र) – प्रबिम्बित ब्रह्मा अर्थात् मन, बुद्धि आ चेतना स समपन्न अहंकार, स्थूल प्रवृति मे उलझि क रहएवाला या वैश्विक , अहं, उदासिनता, ऐन्द्रिय(मन, अस्मिता ।

५) सत्यवती (शान्तनुक दोसर पत्नी) – जड पदार्थक रुप मे आदि प्रकृति ।

६) व्यास (सत्यवती आ ऋषि पाराशरक पुत्र) – विवेकशक्तिस सापेक्ष चेतना ।

७) चित्रागंद (सत्यवती आ शान्तनुक प्रथम पुत्र) – महत्तत्त्वस आध तत्वस आधारभूत समावेशी मानसिक चेतना ।

८) विचित्र विर्य (सत्यवती आ शान्तनुक दोसर पुत्र) – दैवी–अहं ।

९) अम्बिका (विचित्र विर्यक प्रथम पत्नी) – नकारात्मक संदेह ।

१०) अम्बालिका (विचित्रविर्यक दोसर पत्नी) – सकारात्मक विवेकशक्ति ।

११) धृतराष्ट्र – इन्द्रिय(आशक्त मनस विवेकशक्ति के अभाव ।

१२) गान्धारी (धृतराष्ट्रक प्रथम पत्नी) – ईच्छाशक्तिक स्वामिनी ।

१३) वैश्या (धृतराष्ट्रक दोसर पत्नी) – ईच्छाक आशक्ति ।

१४) पाण्डु – शुद्ध विवेकशील प्रज्ञास सकारात्मक पक्ष ।

१५) कुन्ती – वैराग्यक शक्ति ।

१६) माद्री – वैराग्यस अनुरक्तिक शक्ति ।

१७) दुर्योधन (गान्धारीक प्रथम पुत्र) – मिथ्याभिमानी ईच्छास भौतिक ईच्छाक प्रतीक ।

१८) गान्धारीक अन्य ९९ पुत्र – सांसारिक ईच्छास क्रोधस लोभस धनलोलुप्तास घृणास ईर्श्यास दुष्टतास वासनास यौन(आशक्तिः दुरुपयोगस असंयमस बेईमानीस नीचतास क्रुरतास दुषित ईच्छास दोसर के कष्ट देबाक ईच्छास विनाशकारी प्रवृतिस निर्दयतास निष्ठुर विचार एवं वचनस अधिरतास लिप्सास स्वार्थस निरंकुशतास क्रोधावेगः ढिठाईस झगरालुस सामंजस्यक अभावस  प्रतिसोधक भावनास संवेदनशील मनोभावस शारीरिक आलस्यस कायरतास अन्यमनस्कतास आध्यात्मिक उदासिनतास अपवित्र मन आ आत्मास मूर्खतास मानसिक दुर्बलतास दूरदृष्टिक अभावस चंचलतास इन्द्रिय आशक्तिस चिन्तास अविश्वासस सपथ तोडबस आवेगशीलतास असन्तुलनस अति भोजनस पाखण्डस कडवाहट आदि(आदि ।

१९) युयुत्सु (वैश्याक पुत्र) – मनोवैज्ञानिक युद्धक ईच्छा ।

२०) युधिष्ठिर – शान्तीस आकाश तत्व ।

२१) भीम – प्राणशक्ति त्तत्वस जीवन शक्ति पर नियनत्रण ।

२२) अर्जुन – तेजस् तत्वस आत्म नियनत्रक आशक्ति ।

२३) नकुल – जल तत्वस उचित नियम के पालन करबाक शक्ति ।

२४) सहदेब – पृथ्वी तत्वस खराब तत्व स प्रतिरोधक ।

२५) द्रौपदी – कुण्डलित प्राणशक्ति ।

२६) श्रीकृष्ण – जागृत आत्म–चेतनास ध्यान–जनित अन्तर्ज्ञान ।

२७) अभिमन्यु – संयम ।

२८) विदुर – मनीषीस बुद्धिमानस अर्थकुशल ।

२९) कर्ण – रागस आशक्ति ।

३०) द्रोण – संस्कारस चेतनाक द्रवीभूत अवस्था ।

३१) कृपा – अविधा ।

३२) अश्वत्थामा – सुप्त ईच्छा ।

३३) विराट – समाधि ।

३४) संजय – अन्तर्ज्ञानात्मक आत्म विश्लेशनस निष्पक्ष ।

३५) द्रुपद – तीव्र वैराग्य ।

३६) युयुधान – दिव्य भक्तिस श्रद्धा ।

३७) उत्तमौजस – ओजस्वी ब्रह्मचर्य ।

३८) चेकितान – दिव्य स्मरण शक्ति ।

समाज मे महाभारतक पात्रक प्रतीकात्मक गुण स सम्पन्न लोक नित्य विधमान छथि आ वो सभ संसारिक रंगमंच पर अपन नियति अनुसार रंगमंचन निरन्तर करति छथि आ करैत रहताह । हम सभ से हो अहि मे समाहित छी । संसार मे महाभारत नित्य घटित होएबाक होइत अछि आ एकर अनुभूति हम सभ निरन्तर करैत छी आ करैत रहब । ई संसारक नियम छैक आ विधान सेहो छैक जे कर्म अनुसारक फल सभ के अवश्यमेव प्राप्त होईत छैक |