नरन्तर एक सप्ताह सँ भीषण अग्नि बरैस रहल छल । ग्रीष्म ऋतु बिकरालरुप धारण केने छल । अहि समय मे माधवी सिलिङ्घ पंखा उपर सँ आ टेबुल पंखा टेबुल पर राखी संचालितकऽ निद्रामग्न छलिह । दिवाकरके वक्रभृकुटि पागल दिवानी प्रवल वेग सँ आ रुसल रुपरङ्घ सँ विहिन ऋतुसऽ ,सब चिज सँ निश्चिन्त भऽ ओ सुतल छलिह । आंगन के बीच मे चटाई पर गँहुम पसारी देने छलिह । परेवा सब के अपन भूख मेटेवाक आई स्वर्ण दिन छल । सब परेवा पेट भरी दाना चुनि चुनि खेलक ।
बाबा जग मोहनलाल के समय मे तीन तल्ला घर पूर्व दिस सँ आ दुतल्ला के बनल भान्सा घर , शौचालय तथा पानी के उतम वव्यस्था उपलब्ध छल । अहि के अतिरिकतm प्रतयेक धरमे भान्सा घर सेहो छल । माधवी दम्पती स्वंय भू—तल पर रहैत छलिह । अपन आवास के दोसर आ तेसर खण्ड के घर ओ भाडा मे लगबैत छलिह । पति रोशन राकेश बाबू अमेरिका किछ कार्यवश चलि गेल छलाह । पूत्र अभिजित चीन गेल वर्षों बित गेल अखनतक वापस नही आयल छल ।
अभिजित साहित्य,विज्ञान,कहानी, समाजशात्र,रेडियो इन्जिनियरिङ्घ,रेलवे इन्जिनियरिङ्घ, विषयक अधिक पुस्तक रखने छल । अहि घर के छोटका किताब घर कहि सकैत छी । अहि किताब घर मे दश आलमारी मे किताब भडल छल । घर के मध्य भाग मे एकटा आयताकार टेबुल राखल छल । अहि टेबुल के चारुकात एक एक टा कुर्सी राखल छल ।
माधवी घर मे रही कऽ अकेलापन के तोडवाक लेल अति दूर रहबला विद्यार्थी के विद्या अध्ययन हेतु अपन धर भाडा मे देवाक निश्चय केलैन । एक वर्षसँ सात विद्यार्थी कालेज मे अध्ययन करबाक लेल माधवी के घर मे रहीरहल छलाह । किताब घर मे राखल किताब पढबाक सुविधा प्राप्त छलैक । विद्यार्थी सब किछ पत्र पत्रिका किन कऽ लाबैथत ओही पत्रिकाके पुस्तकालय मे राखी दैत छलाह । अखनो तीन रुम खाली छल ।
माधवी के घर के कोना मे रहल भण्डारगृह मे अन्न के संरक्षण अर्थात गोदाम घर के देखरेख के बाद जे समय बचल तऽ पूजापाठ सँ निवृत भेलापर टेलिभिजन देख आ पति पुत्र सँ फेशबुक पर बात कऽ सन्तुष्टि प्राप्त कऽ बितवैत छलिह ।
एकाएक घंटी के कर्कश स्वर सुनि हडबडाक उठी बैसली माधवी , एहन तपैत मौषम मे के आबि गेल गेटपर ? एहन बात सोचैत—सोचैत ओ अपन नयन के खोलैत खोलैत खोललिह ।
बाहर किशोरावस्था के पार कऽ चुकल दुटा युवक छल । भीषण गर्मी मे पसिना सँ वस्त्र भिजल छल । मुखारबिन्दु लाल भ गेल छल । माधवी ओही दुनु युवक पर प्रश्नसूचक दृष्टि लगैलेखिन, तखन गोरवणीय युवक शिष्ट स्वर मे पुछलक कि काकी घर मे रहवाक हेतु खालि छैक ?।”
माधवी के लागल जे युवक भद्र परिवार सँ सम्बन्ध रखैत अछि,ओ पूर्णरुपसँ ओकरा विषय मे जानवाक लेल चाहलैथ कि करैत छि अहाँसब ?”
हम दुनु साथी पढैत छी, आ सरकारी नोकरी करबाक लेल प्रयास से हो कऽ रहल छी । हम दुनु साथी प्रदेश न २ के निवासी छी । हमर नाम राम गोपाल अछि आ हमर साथी के नाम रामस्वरुप छैक । अपना प्रदेश सँ हमसब स्नातक पास कऽ लेने छी ।
राम गोपाल अपना मन में विचार केलक जे ज्यादा समझदारी देखेनाई मूर्खता के निशानि अछि । परिथिति के अनुसार अपना के समनेवालाके समान बना लेनाई प्रत्येक बेर अपना के समझदार साबित करवाक इच्छा रखनाई मूर्खता भऽ जायत ।
ओ सोचलक जे लोग के वही चीज के समझाउ जे सामनेवालाके समझ सहज रुप सँ आबिजाई, अगर सामनवाला तयकऽलेलक जे आदमी अपन गलतबात हमरापर लाद चाहैत अछि तऽ समस्या उत्यपन्न भऽ जायत, लाहि सँ रामगोपाल प्रत्येक शब्द के बहुत समझ के साथ मुहँ सँ निकलबाक प्रयास करैत रहल ।
रामगोपाल के बात सँ सन्तुष्ट भऽ गेट खोलिदेलखिन । दुनू युवक घर के भितर आबि गेल ।
अहाँसब कतेक आदमी सब संगे रहब ? भितर प्रवेश केला के बाद माधवी पुछलखिन |
“बस हम दुनू साथी संगे रहब । ” रामगोपाल तुरन्त जवाब देलक । “ खाना कहाँ खायब ” “हम दुनू मिलक पका लेब । ” पहिने कोठरी देख लिअ ?
कोठरी के चाभी दैत माधवी कहि देलखिन जे कोठरी भाडा प्रति महिनारु २०००।— लागत । रात्री के समय ८ बजे सँ पहिने घर मे वापस आबि जाय पडत । अहि घर मे रहल पुस्तकालय के उपयोग कऽ सकैत छी । परञ्च पन्ना फारबाक आ चोरी केलापर कारबाही के रुपसऽ रु ५०००।—जरिवाना प्रति पुस्तक के लागत । अहि तरहसऽ घर के सम्पूर्ण नियम क्रमशः बता देलखिन माधवी ।
ओ दुनू समझदार साथी छल । सब बात मन्जुर कऽ माधवी के घर मे रहलागल अहि समय में सोचैत रास्वरुप के महान दार्शनिक आर्चाय चाणक्य के नीति के याद आबि गेलैक । “संसार एक एहन कऽवा वृक्ष अछि जाहिके मात्र दूटा फूल अमृत समान मिठगर होइत अछि । एकटा मधुर वाणी दोसर सज्जन के संगति ।”
दुनू मित्र के माधवी के घर मे रहैत दस मास व्यतित भऽ गेल । माधवी के घर भाडा प्रति महिना के अन्त मे प्राप्त भऽ जाइत छल । पुस्तकालय मे प्रति दिन दुनू मित्र किछ समय बैस कऽ समाचारपत्र आ किताब अवश्य पढैत छलाह । माधवी अहि दुनू मित्र के साथे घर मे रहवला प्रत्येक व्यतिm पर नजरी रखैत छलिह |
वुधवार के दिन सबेरे घर के पूर्वी भाग मे गुलाब के दुटा फूल फूलल छल ।
गुलाव के फूल देखकऽ माधवी अति प्रश्न्न भऽ गेलिह । सबेरे के ठीक नौ बजे चीनसऽ फोन आयल “माता जी हम आबि रहल छी । ” माधवी अपन बच्चा के कोना कोन खाना खुवाबल जाय ताहि के लिष्ट बनाबमे लागि गेलिह । अभिजित के सब सब सँ प्रिय खाद्य पदार्थ छल खिर पूरी ,केरा के तरुवा, दही, पापड । से आइ नजदिक के दोकान सँ किन कऽ घर मे राखी लेलिह ।
शुक्र दिन, दिन के ४ बजे ओ घर लोकंगली पहुँच गेल । अपन माता जी के चरण स्र्पश केलक । माता जी अपन हाथ सँ बनायल व्यन्जन पूरी —तरकारी दही , केराके तरुवा आ पापड भरि पेट अभिजित बहुत दिन के बाद आनन्द सँ भोजन खेलक ।
रामगोपाल आ रामस्वरुप से हो बरण्डा पर आबि कऽ अभिजित के भैया जी कहीकऽ चरण स्पर्श केलक, ओही ठाम राखल कुर्सी पर तीनु आदमी बैस गेल । तीनु आदमी देश के वर्तमान राजनीति के र्चचा शुरु केलक आ प्रतियोगीता परीक्षा मे पास कोना कैल जाय ताहि पर विचार विर्मश शुरु भगेल अहि समय मे माधवी तीन कप चाह पिवाक ले आनि देलखिन ।
अभिजित कहलक जे हमरा सब के दोसर के थारी मे अधिक घी देखाइत पढैत अछि, लेकिन हम नही बिचारकऽ पबैत छी जे हमरा थारी मे घी कियाक नही अछि ? हमरा सोचबाक चाही जे काम करैत छी अोही कामके कोना बढीयासऽ काम कऽसकैत छी । अहि के अखन के भाषा मे वैल्यू एडिसन कहल जाइत अछि । अहि तरीका के अपनाकऽ उन्नती के शिखर पर पहुँचल जा सकैत अछि । अन्यथा यदि हम कोल्हु के बैल जका लागल रहब तऽ काम त होइत रहत , जिदंगी चलैत रहत, परञ्च गुणवता नहीं आयत, जे वास्तव मे ऐवाक चाही ।
अहि ज्ञानके ह्दयमे राखी दुनु मित्र लगातारके परिश्रमस प्रतियोगीता परीक्षा परराष्ट्र मन्त्रालयके शाखा अधिकृत के पद पर पासभऽ गेलाह । रामस्वरुपके पदस्थापन फान्स के राजधानी पेरीस मे भेल आ रागोपाल के पदस्थापन चीन मे ।
पुस्तक भवन मे माधवी दुनु मित्र के अति भवुक क्षण मे बिदाई फूल के माला पहिराक बिदा केलखिन । अहि सुखद समाहरोह घर मे रहबला सदस्य के अतिरितm टोल परोस के लोग से हो उपस्थित छलाह । कालचक्र चलायमान छल । देखैत देखैत एक वर्ष पाँच महिना व्यतीत भऽ गेल । दुनु मित्र माधवी के चरर्ण स्पर्श कऽ अपन गन्तव्य दिस बिदा भऽ गेलाह । आइ अहि शहर के लोक मार्ग उल्लासित छल ।साथे माधवी के हृदय मे अति प्रसंन्नता छायल छल ।
रहिम कवि कहैत छथि । रमिन असुवा नयन ढरी जिय सुख प्रगट करेय । जाहि निकारो गेह ते कस न भेद कहि देय ।