मुझे न छोड़ा

सुरेश ना. दास

श्रीपर क्या लिखूँ तुम्हे, संसार तुम्हारे पिछे है ।
जग में जहाँ कहीं भी देखो, औरत ही सव करती है ।।
ममता मे तेरी प्यार भरा है, पिने दे प्यासे हम हंै ।
याद भूला कर मायके की, कर ख्याल तुम्हारे साजन हैं ।।
तिनका का सहारा पाकर, मानव मौका पर बढते हंै ।
जव पूरा है अधिकार मेरा, बैठ हम यहाँ क्याें झखते हंै ।।
शूल अति सुगम नहीं होता, सागर का शोभा जल है ।
सुन्दर मन जीवन सुखमय, होता जव नारी संग है ।।
शीला समान पड़ी हो पिहर, हम परदेश भटकते हंै ।
क्या प्यार सजग होता नहीं, कभी मन में हम खट्कते हैं ।।
लाल सरोज सम गात तुम्हारी, चन्द्रमुखी कोकिल कंठ है ।
अधर विम्व याद नहीं छुटे, कहो जिया किसके संग है ।।
देखन दे अव आया समय, कव आओगी लिख भेजो पाती ।
करो उपाय तुम्ही अव इसका, एक जगह रहे जिस भांती ।।
वीना प्रेम का वेकार जीवन, और वेकार सव श्रृँगार है ।
जिस समय तू, वनी राधिका, हम कृष्ण हमेशा तैयार हैं ।।

सुपुत्री श्रीमती रोजी कर्ण का पिता श्री सुरेश ना. दास, उस समय यह कविता लिखे हेंै, जिस समय उनकी धर्मपत्नी श्रीमती शुशिला देवी दास कायस्थ अपनी जन्मस्थल गँगापुर (राजखरवार) मधुवनी जाकर निश्चिन्त रुप से वैठी हुई थी और वह अकेला सुखीपुर सिरहा में एकात्मक जीवन विता रहे थे । उस समय की विरह—वेदना से ओत—प्रोत होकर यह आत्म—कथा लिपिवद्ध किया है ।)