याद करें हम उनकी, जो भूल जाते ह

—डा. गौरी शंकर लाल दास

भुलाने कि कोशिश बहुत हो रही है……….. मगर याद करने को जी चाहता है ।

अल्जाइमर के रोगियों को भुलाने की कोशिश नहीं करनी पडती है । उनका रोग ही ऐसा है कि वे भूलते जाते हैं—अपने प्रतिदिन व्यबहार की वस्तुओं को, अपने नाते—रिश्तेदारों को और बाद में अपने पति÷पत्नियों को ! वे आने जाने का रास्ता भी भूल जाते हैं । जाना है भोटाहिटी तो चले जाएँगें मंगलबजार । इतना ही नहीं अपने घरका पता ठिगाना भी भूल जाएंगे । इसे इस तरह से समझिए । कल्पना कीजिए एक वडा सा हाल है । उसमें सैकडों विजलीके बल्ब लगे हैं, जिससे वह पूर्ण रूप से जाज्वल्यमान है । अव कोई एक नटखट बालक आता है और वह एक—एक बल्ब का स्विच बुझाता जाता है — पहले थोडी ज्योति कम हुई, उसके बाद ज्यादा और पीछे तो एकदम अन्धकार छा जाता है । अल्जाइमर के रोगीका यही हाल होता है । पहले थोडी स्मृति गँवाई, बाद में पूरी स्मृति का लोप हो जाता है । हाल का स्विचतो पुनः जलाया जा सकता है पर इन रोगियों की स्मरण शक्ति किसी भी प्रकार से वापस नहीं आ सकती ।

एक रोज पार्क में एक वयोवृद्ध व्यक्ति बैठे रो रहे थे । एक दयालु युवक को उनपर दया आ गयी ।

युवक ः “अंकलजी क्यों रो रहे हो ?”

वृद्ध ः “मेरा एक सुन्दर बंगला है ……………”

युवक ः “यह तो खुशी की बात है, इस बडे शहर में सबों को अपना घर कहाँ नसीव होता है?”

वृद्ध ः “बंगले के अहाते में विभिन्न प्रकार के फल फूलभी लगे हैं”

युवक ः “बहुत अच्छी बात है, फल—फूल तो लगाना ही चाहिए । हरियाली से अक्सीजन भी प्राप्त

होता है और वातावरण भी खुशनुमा रहता है ।”

वृद्ध ः “और एक अलसेशियन कुत्ता भी है जो तालीम प्राप्त है …………”

युवक ः “हाँ, आजकल एक कुत्ता भी रहना अत्यावश्यक है । इस शहर में तो दिन दहाडे चोरी डकैती हो जाती है । किसीको सुरक्षा नहीं ………….”

वृद्ध ः “रोना जारी रखते हुए— और मेरी बीबी बहुत ही खूबसुरत और वफादार है, मेरा

वडा ध्यान रखती है ………….”

युवक ः “ आप तो वडे भाग्यशाली हो, तो इसमें रोने की क्या बात है ?”

वृद्ध ः “क्यों न रोऊँ, अपने घरका पता ठिगाना ही मुझे याद नहीं ।”

इस रोग के तीन चरण होते हैं — प्रारम्भिक ९mष्मि०, मध्यम ९mयमभचबतभ० और गम्भीर ९कभचष्यगक० पर तीनों चरणों के बीच की विभाजन रेखा सुस्पष्ट नहीं होती। पहले चरण में याददाश्त में थोडी कमी होती है । रोगी प्रतिदिन व्यवहार की वस्तुओं, जैसे रोटी, घडी, कलम का नाम भूलता है । अपने दैनिक काम को भी सम्पन्न करने में कठिनाई होती है, अङ्काें का क्या मतलव होता है, पता नहीं रहता । उन्हें अपने शौक की वस्तुओं में अभिरुचि नहीं रहती । दूसरे चरण में तो अपने मित्रों और परिवार के सदस्यों को भी पहचान नहीं सकते, निरुद्देश्य घूमते रहते हैं और रास्ता भुल जाते हैं । बाद में कपडे लगाना, ब्रश से दाँत साफ करना भी भूल जाते हैं । गम्भीर अवश्था में तो पति पत्नी को, पत्नी पति को भूल जाते हैं, नहीं पहचानते । रोगीको यह भी याद नहीं रहता कि उसने खाना खाया कि नहीं । बाद में खाना खाने में भी कठिनाई होती है । अन्तिम अवस्था में तो रोगी शय्याग्रस्त हो जाता है, पैखाना—पेशाव भी शय्या पर ही हो जाता है । ऐसी अवस्था में रोगी को ५—६ घंटे में उल्टाना जरूरी होता है, नहीं तो (बेड सोर )द्यभम क्यचभ० होने की सम्भावना रहती है ।

एक जर्मन न्यूरो प्याथोलोजिष्ट थे अल्वाई अलजाइमर ९ब्यिष् ब्शिजभष्mभच० । उन्होंने अपनी एक मरीजा, अगस्ते डी, के मरणोपरान्त उसके मस्तिष्क का परीक्षण किया । उन्होंने पाया की उसके मस्तिष्क में एक प्रकार का प्रोटीन — बीटा एमील्वाइड ९द्यभतब ब्mभयिष्० का असाधारण जमाव था । जिससे वह पीडित थी । उन्होंने १९०६ ई. में इस बारे वैज्ञानिक पत्रिका में लेख प्रकाशित किया । अतः उन्हीं के नाम पर इसका नामकरण किया गया “अल्जाइमर रोग” । डिमेंशिया ९म्झभलतष्ब० जिसे संस्कृत में मनोभ्रंश कहते हैं उसके बहुत कारण हैं । परन्तु प्रमुख कारण अल्जाइमर रोग है, जो प्रायः ६५ वर्ष उमर के बाद लगता है । कहते हैं ८५ वर्ष उमर के बाद इस रोग के लगने की सम्भावना ५०% हो जाती है । विश्व में ज्येष्ठ नागरिककी संख्या द्रुत गति से बढ रही हे । इससे अल्जाइमर रोगियों की संख्या में वृद्धि होना निश्चित है । पूरे विश्व में अल्जाइमर रोगियों की संख्या ५ करोड होने का अनुमान है । प्रत्येक ३ सेकेण्ड में अल्जाइमर रोगीयाें कि संख्या में एक की वृद्धि होती है । नेपाल में इस रोग की गम्भीरता का अन्दाज इस आकडें से लगाया जा सकता है कि २०१५ ई. में ७८,००० अल्जाइमर रोगीयों की संख्या होने का अनुमान था, जो २०३० ई. में १,३४,००० और २०५० ई. में तीन गुणा से भी ज्यादा २,८५,००० पहुँचने वाली है ।

हम लोगों ने अल्जाइमर विस्मृति समाज ९ब्शिजबष्mभच बलम च्भबितभम म्झभलतष्ब क्यअष्भतथ० १९६९ में स्थापित किया । हमारे एक सदस्य थे प्रसिद्ध साहित्यकार कमलमणि दीक्षित, जो अब नहीं रहे । उनकी धर्मपत्नी देवीजी को यह रोग था । उन्होंने करीब १६ वर्ष इस रोग से लड्ते बिताया । पहले इसकी दवा अमेरिका से मँगाते थे, बादमें भारत से, अब तो यहीं मिलती है । दुःख की बात है की इस रोग का कोई कारगर इलाज नहीं है । प्रारम्भिक अवस्था में इलाज से इस रोग की अधोमुखी गतिको कम किया जा सकता है । अतः आवश्यक है इस रोग की प्रारम्भिक अवस्था में निदान की । हमारे एक सदस्य डा. रमेश कँडेल जो एक विशेषज्ञ हैं, प्रत्येक मंगलवार को पाटन अस्पताल में मेमोरी क्लिनीक ९ःझयचथ ऋष्लिष्अ०चलाते हैं । अतः शङ्का लगने पर मंगलवार को पाटन अस्पताल में जंचाने जा सकते हैं । स्मरणीय है कि सरकार अल्जाइमर के रोगियों को १ लाख रुपया इलाज के लिए भुगतान करती है । पर इसके लिए पाटन अस्पताल या वीर अस्पताल की सिफारिश आवश्यक है ।

कमलमणि दीक्षित कहा करते थे कि अल्जाइमरका रोगि स्थित प्रज्ञ होता है क्योंकि उसे कोई फिक्र नहीं, पूरा बोझ तो परिवारवालों पर पडता है—सेवा शुश्रूषा का दुर्वह भार । यह रोग समदर्शी भी है—किसी को नहीं छोडता । बडे बडे नेता, पंडित, बलशाली सभी इसके चंगुल में फँसते हैं । रोनाल्ड रेगन ८९ वर्ष में यह भी भूल गए कि वे अमेरिका के राष्ट्रपति थे । इसी तरह लौह महिला मारगरेट थ्याचर भी इस रोग से पीडित थीं । प्रसिद्ध सिने तारिका अनिन्द्य सुन्दरी रीता हेवर्थ की सुन्दरताका जादू भी नहीं चला । अपार बलशाली सुगर रे रोबिन्सन, जो पाँच दफे मिड्ल वेट च्याम्पियन बने थे, उनको भी इस रोग ने दबोच लिया । महा पंडित राहुल साँकृत्यायन भी अपनी सारी विद्वता भूल गए । नेपाल की नेतृ शैलजा आचार्य भी इस रोग से पीडित थीं । नेपाल के और भी प्रतिष्ठित व्यक्ति इस रोगकी पीडाको झेल रहे हैं ।

अतः इस रोग का निदान प्रारम्भिक अवश्था में होने से हम अधोगति की तीव्रता कम कर सकते हैं । याद रखें, यह रोग किसीको भी अपने चंगुल में दबोच सकता है ।