मैया नैहर तोर उजडी

डा. गौरी शंकर लाल दास

मंै ऐसा भुक्तभोगी हूँ, जिसने दो बडे भूकम्पाें की त्रासदीको जीवन में झेला है ! जब १९३४ ई. मे ८.४ रेक्टर स्केलका भूकम्प आया तो सिर्पm ९ बर्ष २ महीनेका विद्यार्थी था और राजनगर के मिड्ल इङ्गलिश स्कूल की कक्षा पाँच का विद्यार्थी था । १५ जनवरी का २ बजकर १० मिनटका वक्त था । पाँच क्लास में अङ्गरेजी की पढाई चल रही थी और मास्टर थे नत्थुलाल दास, जो हमारे बाबा लगते थे । ऐसे में पहले जोराें की गडगडाहट की आवाज आई; हमने समझा कि राजनगर इस्टेट के मैनेजर राहा बाबू (एक बंगाली ) की बग्गी की आवाज है । पर जोराें का झटका आना आरम्भ हुआ और सव कुछ हिलने लगा–मास्टर साहव के आगे का टेबुल और सभी बेंच भी जिसपर छात्र बैठे ध्यान से पाठ सुन रहे थे । तभी मास्टर साहबने जोर से चिल्लाकर कहा “भागो, भागो नवग्रह इकट्ठा हुआ !! नवग्रह इकट्ठा हुआ !!! ” और हम सभी गिरते–पड़ते क्लास से भागे । बरामदा से नीचे कूदने पर एक–दूसरे पर गिरे और खपरैल घरका खपडा भी शरीर पर गिरा । खैर था कि कोई जख्मी नहीं हुआ । स्कुलके प्राङ्गण के उत्तर की ओर भारतकी भू–बनावट का एक प्रारूप बना था, उसी खुली जगह पर सब इकठ्ठा हुए । इतने में सड़क की ओर नजर दौडायी तो देखते हैं कि सडक फट गयी है और उससे पानी निकल रहा है । मेरीे माँ ने (जिसे हम दीदी कहकर पुकारते थे, क्योंकि मामा दीदी कह कर सम्बोधन करते थे और मंै भी उनकी नकल में वैसा ही कहने लगा था ) एक दफे सुनाया था कि बडा भूुकम्प आने पर धरती फट जाती है और पानी निकलता है जिससे प्रलय उपस्थित हो जाता है । एक वाकया सुना रही थी कि भूकम्प आनेपर एक गढ्ढा बन गया था और जितने बाँस डालने पर भी गहराई का पता नहीं चलता था ! मेरे शिशु मन में वह बात कौंध गई और मंैने समझा कि प्रलय उपस्थित होने ही बाला है । किसी ने बात सुझाई कि पानी में डूबने से बचने के लिए चला जाय ड्योढी की ओर, और पूरा हुजूम उधर ही अग्रसर हुआ । कुछ ही मिनटाें में ड्योढी पहुंचने पर आँख के सामने ही दुर्गा मन्दिरका गुम्बद टुट कर उँची आवाज के साथ घराशायी हो गया और चारों ओर धूल छा गयी । अन्य मन्दिर तो नहीं गिरे परन्तु शिव मन्दिर चरक गया और पूजा के लायक नही रहा । नौ–लखा के आलीशान महल मे भी बडी–बडी दरारें पड गई और सब से उपर का भाग आधा फट कर गिर गया । नौ–लखा तो बाद में पूरा तोड दिया गया पर मन्दिरें अभी भी अलस, उदास खडी अतीत की गाथा गा रहीं हैं । दुर्गति नाशिनी की वैसी दुर्गति देख हमलोग वापस मुड़े तो हमारे भाईजी और ‘बडका’ भैया मिले । भाईजी हम हरिनारायण दास, मुर्तुजापुर निवासी अपने फुफेरे भाईको और बडका भैया श्रीकृष्ण चौधरी (इनरवा) ममेरे भाईको कहते थे । मुझे पढाने का जिम्मा ‘बडका’ भैया का था जो ूक्उबचभ तजभ चयम बलम कउयष् ितजभ अजष्मिू मे विश्वास रखते थे और कभी कभार इसको अंजाम देते रहते थे ! उस वक्त वे दोनाें रमेश्वर हाई इंगलिश स्कूल में पढते थे । हरिनारायण दास तो स्कूल के प्रथम बैच के थे जिन्होने मैट्रिकुलेशन पास उसी स्कूल से किया था । हरिनारायण दास मैट्रिकुलेशन पास होनेके उपरान्त बहुत जल्दी ही स्वर्ग सिधार गए । श्री कुष्ण चौधरी, ग्रैजुएट होने के बाद नेपाल सरकार के भंसार अधिकृत पद पर पदासीन हुए और बाद मे दरभंगे में घर बनाकर रहने लगे । हाँ, तो उन लोगाें से मिलने के बाद वापस घर आए । घर के भीतर रात विताने का साहस नहीं हुआ और हमसबाें ने घरके उत्तर में स्थित राम मन्दिर के पिछवाड़े में बाँसका खम्भा गाड़ कर और साडि़याें का वितान देकर रात बसर की । रात भर भूकम्पके झटके आते रहे और सभी भगवान् रामका सस्वर स्मरण करते रहे ! इत्तफाक ऐसा रहा कि माघ संक्रान्तिके दूसरे ही दिन भूकम्प आया था और घरमे “लाई, चुरलाई, तिलवा” मौजुद था जिससे खाना पकाने का झंझट नही रहा । रेडी मेड खाना तैयार था !! पर पानी की समस्या आ गयी, कारण सभी इनारों में बालू भर गया था; पानी सूख गया था । शुक्र है एक इनार में ऐसा नहीं हुआ और उसीसे लोगो ने प्यास मिटाई !! भूकम्प में घर तो ध्वस्त नहीं हुआ पर उसी साल बाढ आने से भू–लुंठीत हो गया । घरती में बडी बडी दरारें पडी थीं उसमें गीदडों ने अपने बास–स्थान बना लिए थे । बाद में मालूम हुआ कि नेपाल में आठ हजार लोग हताहत हुए थे । काठमाण्डू के टुडी खेलमे लोग तम्बू गाड कर रह रहे थे । और जुद्घ शमशेर ने उनके लिए अच्छा इन्तजाम किया था । ब्रह्म शमशेर की अध्यक्षता में एक स्वयंसेवक टोली बनी थी जिसने बहुत सराहनीय काम किया था । सिद्घिचरणजी भी उसके सदस्य थे । दरभंगा जिले में भूकम्पके तांडव–नृत्यको लक्ष्य कर एक कवि ने (नाम याद नही है ) मर्मस्पर्शी कविता बनायी थी जिसे गाकर ट्रेन में सहायता (भिक्षा) मांगते थे ः मैया नैहर तोर उजड़ी माघ अमावस सोम दिवस मह, तेसर पहर घड़ी । प्रलयकम्प भूकम्प घेर लेल, धन जन नाश करी ।। मैया नैहरतोर उजड़ी ।। दूसरे बड़े भूकम्प से पाला पडा २५ एप्रील,२०१५ (२०७२ साल बैशाख १२ गते) शनिवार को । १९३४ ई के भुकम्प के वक्त मंै ९ साल का था तो २०१५ ई के भुकम्प में ९० बर्षका । उम्र में सिर्फ एक शून्यका फर्क था । हमलोग यानी राष्ट्रीय ज्येष्ठ नागरिक महासंघ की तालीम देने वाली टोली बनेपा और घुलीखेल के बीच में स्थित एक तालीम केन्द्रमें ज्येष्ठ नागरिक सम्बन्धित संस्थाओं में सेवा शुश्रूषा करने वालाें को तालीम देने में मशगूल थे । पूर्वाञ्चल से आए हुए करीब तीस प्रशिक्षार्थी सहभागी थे । तभी ११.५६ बजे पूर्वाह्न को ७.६ रेक्टर स्केलके भूकम्पका जबर्दस्त झटका आया । हमलोग तीसरी मंजिल पर थे । अतः ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई पालना झुला रहा हो ! सुखद आश्चर्य की बात है कि एक ही दिन पहले हमने तालीमयाफ्ता सहभागी लोगोंको भूकम्प बारे पूरा पाठ पढाया था ! अतः कोई भागदौड नहीं हुई; सभी टेबुल के नीचे भगवान् को स्मरण करते इंतजार करते रहे । जब भूकम्पका झटका बन्द हुआ तो सभी निकले और खुली जगह में इकट्ठा हुए । रह–रह कर झटके आते रहे । हम जहाँ मैदान (चौर ) में इकट्ठा वहाँसे दक्षिण की ओर एक घर देखते–देखते ध्वस्त हो गया । मंै जब सामान निकालने डरते–डरते अपनी सोने की कोठरी में गया तो देखा कि खिडकी का शीशा फूट गया था और छत से विजली का बल्ब भी टूटकर गिर गया था ! हम लोगों ने खाना नहीं खाया था । तालीम केन्द्र के रसोइया आदि लोगों ने मैदान (चौर ) में ही हमलोगों को खाना खिलाया । इसके बाद सभीलोगों ने अपने–अपने घरों में फोन लगाना शुरू किया । पहले तो फोन नहीं लगा था पर बाद में सम्पर्क स्थापित हुआ । सभीके घरों के लोग सुरक्षित थे । सिर्फ हमारे तालिम–संयोजक श्रीधर लामिछाने की भतीजी का जो दूसरी मंजिल से नीचे कूद गयी थी, हड्डी टूटने का दुःखद समाचार आया था, जब कि तालीमका एक दिन बाँकी ही था !! संयोगवश साथी मनोहर की गाडी वही थी; उसी गाडी से हम घर आये । रास्ते में बनेपा और भक्तपुर के बीच बहुत ही ध्वस्त हुए घर दिखलायी पड़े । एक जगह तो रास्ता ही ढह गया था, परन्तु प्रहरी की मुस्तैदी से रास्ता बन गया था और हम सभी सकुशल घर पहुँच गये । घर में भी सबों को सकुशल पाने से खुशी हुई । इसके बाद १२ मई, २०१५ (बैशाख २९ गते ) १२ः५८ अपराह्ण ६.९ रिक्टर स्केलका फिर पराकम्पका वड़ा झटका आया था । हमलोग शंखमुलमें राष्ट्रीय ज्येष्ठ नागरिक महासंघ के कार्यालय में थे । कोई नुकसान नहीं हुई थी । १२ बैशाखके भूकम्प का केन्द्र विन्दु (भउष्अभलतभच) गोरखा जिले के बारपाक में था और २९ गते बैशाख के पराकम्पका दोलखा और सिन्धुपाल्चोक के बीच । भूकम्प से १४ जिले के लोग प्रभावित हुए थे पर सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए थे दोलखा, सिन्धुपाल्चोक और गोरखा जिलाें के निवासी । इस भुकम्प में आठ हजार से ज्यादे लोगाें की जानें गईं और बाइस हजार से अधिक जख्मी हुए । करीव पाँच हजार घर पूर्ण रूपसे ध्वस्त हो गए और तीन लाख घराें को आंशिक क्षति पहँुची । मशहूर धरहरा पूरी तरह से गिर गया जो १९३४ ई.के भूकम्प में भी गिर गया था और बाद मे पुनर्निमाण हुआ था । करीब तीन हजार धार्मिक और सांस्कृतिक सम्पदाओं का ध्वस्त होना बहुत दुःखद रहा । दुःख की बात है कि अभी भी लोग अस्थायी निवास में जीवन वसर कर रहे हैं !!