सामाजिक रुपान्तरण में कर्ण कायस्थक भूमिका

चन्द्र किशोर मल्लिक
वाल्यकाल सँ सुनैत आयल छि जे ई पुरोहित ॐ नहिं पढवैत छथिन्ह । घर–टोल–पडोस में सत्यनारायण भगवानक पूजाक अवसर आ स्थान पर अग्रज–बरिष्ठ लोकनिक वार्तालाप के ई विषय रहि आयल छैक ।
किछु वयस्क भेलापर हमर वंशाणुगत÷पारिवारिक पुरोहितके निरन्तर आग्रह कयलाके बाद ओ कहलैथ जे – तों सब सगोत्र विवाह करैत छहो, सगोत्र विवाह शुद्र के हौइत छैक, सवर्ण के नै । शुद्र ॐ पढवाक अधिकारी नहिं होइत छैक । परोक्ष रुपें पुरोहित हमरा शुद्र प्रमाणित कय देलैथ ।
पूजा पद्धति – वर्षकृत्य में ॐ के प्रयोग ः–
ब्रह्मा–विष्णु–महेश त्रिदेवके लेल तथा परम् पिता परमात्माके प्रतीक रुपें स्मरण करवाक पवित्र शब्द छैक ॐ । सनातन हिन्दू धर्म अन्तर्गत प्रायः प्रत्येक श्लोक आ मन्त्रक प्रारम्भ ॐ शब्दक उच्चारण सँ होईत छैक ।
हिन्दू धार्मिक व्यवहार ग्रन्थ सब, निर्णय सिन्धू÷धर्म सिन्धू में विश्वामित्र, जमदग्नी, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, बशिष्ठ आ काश्यप सप्तऋषिके तथा आठम् अगत्स्य ऋषिके सन्तान आ शिष्यके ऋषिकूल– गोत्र कहल गेल छैक । वर्तमान प्रचलन में ४९ गोत्र छैक । वैदिक सनातन हिन्दू धर्म में विहीत प्रत्येक संस्कारगत – कर्मकाण्ड – पूजन कार्य में गोत्र के प्रयोग होईत छैक । ओहि ऋषि गुरुकूल के प्राचार्य के प्रवर कहल गेल छैक । प्रत्येक गोत्र के साथे प्रवर के सेहो उच्चारण कयल जाईत छैक । कोनो गोत्र के त्रिप्रवर आ किछु के पञ्चप्रवर होईत छैक । पहाडी–नेपाली ब्राह्मण–क्षेत्रीय समाज में ३६ गोत्र प्रचलन में छैक ।
मिथिला में प्रत्येक मासक पूजा–अर्चना–व्रत–त्यौहार के एकिकृत पद्धति ‘वर्षकृत्य’ पुस्तक में देल गेल छैक । जाहि में पुरुष आ स्त्री (महिला) के लेल विधि सब भिन्न–भिन्न देल गेल छैक । पुरुष क े लेल प्रत्येक श्लोकक प्रारम्भ ॐ तथा महिला के लेल नमः सँ देल गेल छैक ।
उदाहरण के लेल महिलाद्वारा कयल जयवाक पूजन व्रत ः–
१. सोमवारी व्रत पूजा, बेहुला पूजा, हरितालिका, ऋषिपञ्चमी, जिमूतवाहन, आकाश दीपदान, शिवदीपदान, कार्तिक शुक्ल षष्ठी (सूर्यपूजा), सामा पूजा, गौरी पूजा, वटसावित्री पूजा ।
२. कार्तिक शुक्ल द्वितिया के दिन तीनटा पूजा विहित छैक । भातृ द्वितिया, यमपूजा आ कायस्थ चित्रगुप्त पूजा । यम पूजा में चित्रगुप्त भगवान के सेहो आह्वान कयल जाइत छैक, पुरुषद्वारा कयल गेल पूजा में ॐ शब्दक उच्चारण सँ आह्वान कयल जाइत छैक । परन्तु कायस्थ मात्रद्वारा कयल गेल चित्रगुप्त पूजा के प्रारम्भ ‘नमो’ द्वारा देल गेल छैक ।
३. मिथिला में विवाह कार्य के लेल वाजसनेयी विवाह पद्धति प्रचलन में छैक, जाहि में वैदिक मन्त्र श्लोक वृहत रुपें ॐ उच्चारण साथ लिखल गेल छैक । दोसर, सुगम विवाह पद्धति (शुद्र विवाह पद्धति) छैक जे ब्राह्मण इतर वर्ण जाति के लेल छैक, ‘नमो’ सँ प्रारम्भ होइत छैक आ संक्षिप्त छैक ।
४. संस्कारगत् आ पूजन कार्य सम्पादन सङ्कल्प में तथा दान–दक्षिणा ग्रहण कार्य में पुरोहितद्वारा अपन गोत्र आ नाम स्पष्ट उच्चारण करवाक प्रावधान छैक, परन्तु ओ सब ‘यथा गोत्रस्या ब्राह्मणाय …’ वाक्य प्रयोग करैत छथिन्ह ।
५. ई पद्धति पुस्तक सब पढला पर प्रतीत होइत छैक, जे सब पद्धति मूलतः ब्राह्मण वर्ण–वर्ग क े लेल लिखल गेल छैक, पुरोहित वर्ग अपन अनुकूल एकर व्याख्या आ प्रयोग करैत छथिन्ह ।
हिन्दूकरण आ गोत्र ः–
सनातन हिन्दू समाज में सवर्ण स्त्री जाति के गोत्र निर्धारण नहिं भेल छैक, जन्म सँ पिता क े गोत्र, विवाह भेला के बाद पति के गोत्र, विधवा वा पूनर्विवाह भेला के बाद सेहो पति के गोत्र, अर्थात गोत्र परिवर्तन होइत रहैत छैक । परन्तु सम्बन्ध–विच्छेद भेल एकल महिला के कोन गोत्र होयतैक से कोनो धर्मग्रन्थ में नहिं छैक । सम्भवतः धर्माधिकारी सम्वन्ध विच्छेदक कल्पना नहिं कयने होयथिन्ह ।
सनातन हिन्दू धर्म अर्थात वैदिक धर्म पद्धति आ हिन्दू परम्पराक सम्मिश्रण, वैदिक पद्धति शाश्वत आ निरन्तर छैक । परम्परा देश, काल, परिस्थिती अनुसार निर्धारित आ परिवर्तित होइत रहैत छैक ।
श्रद्धा, आस्था, विश्वास के आधार पर धर्मान्तरण करेवाक प्रक्रिया विश्व के प्रत्येक धर्म में छैक । वैदिक हिन्दू धर्म में सेहो छैक । धर्मान्तरित व्यक्ति या समूह में उचित सामाजिक सम्मान के साथे धार्मिक उपासना तथा जीवनयापन के लेल सुरक्षित स्वतन्त्रता के चाहना भेनाई स्वाभाविक छैक । हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान के लेल आदि शङ्कराचार्यद्वारा इशाके नवम् शताब्दी में धर्मान्तरण करयवाक शुरुवात भेल रहैक । ओकर पश्चातो अनेक विद्वान साधु–महात्माद्वारा प्रक्रिया होइत रहलैक । वर्तमान युग में महर्षि
दयानन्द सरस्वतीद्वारा आर्य समाज अन्तर्गत वैदिक हिन्दू धर्मसम्मत तरिका सँ धर्मान्तरण करयवाक ज्वलन्त उदाहरण छैक । परन्तु वर्णाश्रम धर्मपर कायम जातिवादी–रुढीवादी कट्टर सनातनी हिन्दू समाज धर्म रक्षा के नाम पर अपन अनुकूल के पद्धति आ परम्परा चलावय चाहयवाला पुरोहित वर्ग, धर्मान्तरित नवप्रवेशी हिन्दू व्यक्ति या समूह के उचित सम्मान, समावेश, दीक्षा या सुधार स्वीकार करय लेल कदापि तैयार नहिं छथिन्ह । परिणाम सनातन हिन्दू धर्म सँ अन्य धर्म में पलायन भँ रहल छैक, हिन्दू धर्म में प्रवेश करयवाक दरवाजा बन्द कयने छथिन्ह ।
सिद्धार्थ गौतम एकटा राजकुमार छलखिन्ह । बुद्धत्व प्राप्ती भेला के बाद ओ गौतम बुद्ध भेलखिन्ह । गौतम बुद्ध जतय जतय जाय छलखिन्ह, ओहि स्थानक राजा, महाराजा, सामन्त, भूपति सब हुनका सम्मान आ आदर करैत छलखिन्ह । हुनक प्रवचन आ उपदेश सँ प्रभावित भऽ कऽ बौद्ध धर्मावलम्बी भऽ जाइत छलखिन्ह । शासक राजा बौद्ध भेला पर स्वाभाविक रुपें राजकर्मचारी, सेवक आ प्रजागण सेहो सामूहिक बौद्ध अनुयायी भऽ जाइत छलैक । २५०० वर्ष पहिने भेल बौद्ध धार्मिक रुपान्तरित समूदाय इशाके नवम् शताब्दी में आदि शङ्कराचार्यद्वारा हिन्दू धर्म समुदाय में पुनः प्रवेशकाल में ओ पहिने कोन हिन्दू वर्ण जाति के छलैक से स्मरण रहनाई असम्भव । परन्तु हिन्दू धर्म में पूनप्र्रवेशक समय ओकर सामाजिक स्थान आ अवस्था अनुरुप के सम्मानक चाहना भेनाई स्वाभाविक ।
तात्कालीन वर्णाश्रम आ जातीय वर्ग में विभाजित हिन्दू समाजक उच्च वर्ण–वर्ग आ आबद्ध पुरोहित वर्ग धर्मान्तरित नवप्रवेशी समुदाय के यथोचित स्थान प्रदान करयवाक विषय अस्वीकार कय देलखिन्ह । परिणाम स्वरुप राजा, महाराजा, सामन्त आ भूपति समुदाय सवर्ण के नाम उपाधि स्वयं ग्रहण कय कऽ तदनुरुप गोत्र के सेहो निर्धारण कयलखिन्ह । अन्य सामान्य वर्ग अखनो निम्न जाति (शुद्र) आ उपेक्षित छैक ।
भूमिहार ब्राह्मण लोकनि अपना के भगवान परशुराम के वंशज मानैत छथिन्ह । भगवान परशुराम महर्षि जमदग्नी के पुत्र छलखिन्ह । गोत्र परम्परा में जमदग्नी सेहो प्रमुख गोत्र छैक जेकर त्रिप्रवर छैक । अतएव सम्पूर्ण भूमिहार ब्राह्मण समाजके एकेटा गोत्र होयवाक चाहि परन्तु व्यवहार में अनेक गोत्र छैक ।
गोरखाली हिन्दू राजा पृथ्वीनारायण शाह, जिनका नेपाल राज्य एकिकरण (विस्तार ?) के श्रेय देल जाइत छैक, हुनक प्रारम्भिक गोत्र भारद्वाज रहैन्ह, राज्य विजय अभियान क्रम में गोत्र हत्याक पाप सँ बचय के लेल ओ अपन गोत्र परिवर्तन करा काश्यप गोत्र ग्रहण कयलखिन्ह ।
सन् १९३० ई. के दशक में नेपालक हिन्दू राणा प्रधानमन्त्री जुद्धशमशेर बौद्ध धर्मावलम्बी थकाली समुदाय के हिन्दूकरण करवेलकैक, ओकरा सब के हिन्दू नामके साथ ६ चन – शेरचन, भट्टचन, हीराचन, जवाहरचन, गौचन, तुलाचन उपनाम प्रयोग करवाक आदेश देलकैक । वर्णाश्रम समाज में ओकरा सब
के स्थान आ गोत्र निर्धारण नहिं भेल छैक ।
हिन्दूकृत एवं राजभक्त, राज्यक मन्त्री पदपर रहल किराँत लिम्बू समुदाय के प्रबुद्ध नेता पद्मसुन्दर लावतीद्वारा तात्कालीन नेपालक राजा वीरेन्द्र के वि.सं. २०३२ फागुन (फरवरी १९७६ ईं) में भेल राज्याभिषेक में अभिषेक कार्य के लेल चातुर्वण्य – ब्राह्मण, क्षेत्रीय, वैश्य आ शुद्र अन्तर्गत शुद्र के रुप में अभिषेक करौला पर किराँत लिम्बू समुदाय में तीव्र क्षोभ, असन्तुष्टि, आक्रोश आ विरोध भेल विषय स्मरणीय छैक ।
मराठा राज्य के वंशाणुगत प्रधानमन्त्री कोंकणस्थ चित्रपावन ब्राह्मण पेशवा वाजीराव के दोसर विवाह बुन्देलखण्ड के हिन्दू राजा छत्रसाल के मुसलमान पत्नी सँ जन्म भेल पुत्री मस्तानी के साथ भेल रहैन्ह । ओही सँ हुनका एक पुत्र भेलैन्ह नाम राखल गेलैक कृष्णराव । पेशवा चाहैत छलखिन्ह जे ओकरा ब्राह्मण के रुप में उपनयन संस्कार होइक, परन्तु पुरोहित वर्ग संस्कार विधि करावय सँ मना कऽ देलखिन्ह । पश्चात् हुनक मुस्लिम नामाकरण भेलैक, शमशेर बहादुर ।
महात्मा गान्धी के सुपुत्र हरिलाल गान्धी (जन्म अक्टोबर १८८८ ईं) मई १९३६ ई. में सार्वजनिक रुप सँ धर्म परिवर्तन करा मुसलमान भऽ गेलैक । नाम रखलकैक अब्दुल्लाह गान्धी । ओही वर्ष के अन्त में माता कस्तुरबा गान्धी के आग्रह पर ओ पुनः आर्य समाजद्वारा हिन्दू धर्म ग्रहण कयलकैक, नाम रखलकैक हिरालाल गान्धी ।
मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी के विश्वासपात्र सेनापति नेताजी पालकर के औरङ्गजेवद्वारा छलपूर्वक पकडि बलपूर्वक मुसलमान बना देल गेलैक, आ अपन सेना में नियुक्त कऽ देलकैक । कालान्तर में अवसर पावि ओ पुनः शिवाजी समक्ष प्रस्तुत भेलैक । ओकर विगत विश्वासी आ वफादारी सँ प्रभावित शिवाजी महाराज दरवारी आ सल्लाहकारक सहमति सँ पुनः हिन्दू धर्म में विधिवत प्रवेश करा देलकैक ।
तात्कालीन फिल्मी दुनियाँ के प्रसिद्ध गायिका जूवैदा वेगम जेकर जन्म सन् १९२६ ई. में शिया मुस्लिम परिवार में भेल रहैक । जोधपुर रियासत के महाराजा हनुवन्त सिंह राठौर के प्रस्ताव पर आर्य समाज पद्धति सँ ओ हिन्दू धर्म ग्रहण कय कऽ महाराजा सँ विवाह कयलकैक । ओकर हिन्दू नाम विद्यारानी राठौर राखल गेल रहैक ।
वर्णसङ्कर आ जीव विज्ञान ः– वर्णसङ्कर शब्द सवर्ण हिन्दू समाज में अशिष्ट एवं अपमानजनक मानल जाईत छैक । परन्तु जीव वैज्ञानिक सभ जीवजन्तु, पशुपंक्षी तथा वनस्पति के नश्ल सुधार वर्णशङ्कर (ज्थदचष्म) बनेवाक लेल प्रयत्नशिल छथिन्ह, जाहि सँ उन्नत जात के दूधारु गाय–भैंस सहित अधिक माँस–मछली, अन्न, फलफुल मानव भोजन के लेल उपलब्ध भऽ सकैक । ताहिना हाले नेपाली मिडिया में समाचार प्रकाशित भेल छलैक जे सुदूर पश्चिम नेपालक शुक्लाफाँटा वन्यजन्तु आरक्ष में काला हरिण÷कृष्णसार मृग के प्रजाति खतरा में छैक, कारण एके स्थान में रहल निकटतम परिवारक नर–मादाद्वारा प्रजनन, उपाय में कहल गेल छैक जे अन्य स्थान में रहल कृष्णसार मृगक प्रजाति के दूरस्थ परिवारक नर–मादाद्वारा प्रजनन अर्थात वर्णसङ्कर ।
रोगक पहिचान आ निदान के लेल चिकित्सक समुदाय पुछैत छथिन्ह जे परिवार के अन्य सदस्य में सेहो रोगक लक्षण छैक या नहिं तथा पहिने उपचार भेल छैक कि नहिं ? अर्थात वंशाणुगत रोग (ज्भचभमष्तबचथ ( नभलभतष्अ मष्कभबकभ) चिकित्सा वैज्ञानिक एकर गहन एवं गम्भीर खोज अनुसन्धान में निरन्तर प्रयत्नशील छथिन्ह ।
हमरा सबहक पूर्वज ऋषिमुनीके सेहो वंशानुगत रोग सँ सम्बन्धित विषय के किछु ज्ञान–आभास रहल होइतैन्ह, जाहिं स ओ सभ निकटतम रक्त सम्बन्ध में विवाह निषेधक व्यवस्था कयलखिन्ह ।
संविधान आ कानूनी अवस्था ः–
व्यक्ति या समूहक सामाजिक सम्बन्ध के लेल ओकर वैधानिक–कानूनी अवस्था बुझनाई जरुरी होईत छैक ।
नेपालक संविधान, २०७२ (प्रारम्भ सन् २० सेप्टेम्बर, २०१५ ई.) के भाग १ प्रारम्भिक के धारा ४(१) में राज्यक स्वरुप धर्म निरपेक्ष लिखल छैक, धर्म निरपेक्षक व्याख्या में सनातन सँ चलि आयल धर्म संस्कृति के संरक्षण लगायत धार्मिक, सांस्कृतिक स्वतन्त्रता लिखल छैक ।
भाग – ३ मौलिक हक आ कर्तव्यक धारा २९(१) में प्रत्येक व्यक्ति के शोषण विरुद्धक हक देल गेल छैक । उपधारा (२) में धर्म, प्रथा, परम्परा, संस्कार, प्रचलन या अन्य कोनो आधार में ककरो कोनो प्रकार सँ शोषण नहिं करवाक÷होयवाक हक देल गेल छैक ।
नेपालक मुलुकी अपराध संहिता ऐन, २०७४ (दण्ड संहिता) जे वि.सं. २०७५ भाद्र १ गते (१७ अगस्त, २०१८ ईं) सँ प्रचलन में छैक, तेकर परिच्छेद १८ में यौन सम्बन्ध के बारे में लिखल छैक, दफा २२० में हाडनाता करणी गर्न नहुने – अर्थात निकटतम रक्त सम्बन्ध में यौन सम्पर्क दण्डनीय लिखल छैक । उपदफा (१) में अपन जाति या कुल में चलि आयल चलन परम्परा या मान्यता अनुसार विवाह निषेधित व्यक्तिक संग यौन सम्पर्क अपराध आ दण्डनीय लिखल छैक । एहन निकटतम नाता सम्बन्धक व्याख्या उपदफा (२)(क)(ख)(ग)(घ) में लिखल छैक ।
उपदफा (२)(क) में, माय–बेटा आ बाप–बेटी, उपदफा (२)(ख) में, विमातृ माय–बेटा आ बाप–बेटी, सहोदर भाई–बहीन, एके वंश शाखा के ससुर– पूतोहु, एके वंश शाखा के पितामह–पौत्री÷प्रपौत्री, एके वंश शाखा के भैंसुर÷जेठ–भावो या देवर–भाभी ।
उपदफा (२)(ग) एके वंश शाखा के तीन पुस्ता तक के पितामही–पौत्र÷प्रपौत्र, एके वंश शाखा के काका–भतिजी, एके वंश शाखा के भतिजा–काकी, एके वंश शाखा के ससुर–भतिज पुतोहु, मामा–भाञ्जी वा भाञ्जा–मामी, माता तर्फक मौसी–बहीनपुत्र, पत्नी तर्फक सास–जमाय ।
उपदफा (२)(घ) उपर (क)(ख)(ग) के अलावा अपन वंशक सात पुस्ता तक के अन्य नाता में यौन सम्पर्क आचरण पर वंश, शाखा, नाता, आ पुस्ता के विचारक आधारपर दण्डनीय ।
उल्लेखनीय सन्दर्भ ई छैक जे नेपालक कानून में यौनजन्य अपराध में निकटतम रक्त सम्बन्ध –हाडनाता करणी के लेल किटानी साथ देल गेल छैक । पितृकुल के लेल वंश शाखा आ नाता ७ पुस्ता निर्धारित छैक । मातृकुल में माय, मौसी, मामी आ सास मात्र देल गेल छैक । यौनजन्य अपराध में अन्य व्यक्ति, समूह आ समुदाय के लेल दफा २१९ में अलग सँ आरोप आ दण्डक व्यवस्था कयल गेल छैक ।
धार्मिक आधार पर वैवाहिक सम्बन्ध निर्धारण के लेल पञ्जी प्रबन्ध निर्माणक आदेश देनिहार तिरहुत नरेश हरसिंहदेवक सुपुत्र कुमार जगत सिंह के विवाह परिस्थितिजन्य कारण सँ अपन सहोदर मामा भक्तपुर, काठमाण्डौ उपत्यकाके तात्कालीन शासक जयरुद्र मल्ल देवक विधवा सुपुत्री नायक देवी सँभेल रहैन्ह ।
तात्कालीन एक मात्र हिन्दू राष्ट्र नेपालक राजा वीरेन्द्रक विवाह मातामह हरि शमशेरक सहोदर भाई अग्नी शमशेरक पौत्री ऐश्वर्य राणा सँ भेल रहन्हि ।
सन् १९२० ई. के दशक में नेपालक कट्टर हिन्दू राणा प्रधानमन्त्री चन्द्र शमशेरक सहोदर ज्येष्ठ भ्राता खडग शमशेर जे राजनीतिक कारण सँ सागर (मध्यप्रदेश) भारत में निर्वासन में रहैक, तेकर दौहित्री ग्वालियर के राजमाता विजया राजे सिंधिया के सुपुत्री उषा राजे के विवाह चन्द्र शमशेरक प्रपौत्र पशुपति शमशेर सँ भेल छैक ।
तात्कालीन नेपालक राजतन्त्र में सवर्ण हिन्दू राजभक्त एवं मन्त्री भेल विराटनगरक प्रतिष्ठित एक महानुभाव के दिवंगत प्रथम पत्नी सँ जन्म भेल ज्येष्ठ सुपुत्रक विवाह, दिवंगत दोसर पत्नीक सहोदर बहीन सँ करवौने रहथिन्ह ।
नेपालक किछु हिन्दूकरण भेल जाति–जनजाति में ममियौत, पिसियौत भाई–बहीन में अधिकार पूर्वक वैवाहिक सम्बन्ध करवाक प्रचलन छैक ।
मिथिलाको इतिहास, संस्कृति र कला परम्परा पुस्तक में डा. श्री राजेन्द्र प्रसाद विमल लिखने छथिन्ह जे ऋग्वेद भाई–बहीनक तथा पिता–पुत्रीक विवाह के अमान्य ठहर कयने छैक, परन्तु शतपथ ब्राह्मण तेसर तथा चाडीम पीढि तक के अनैतिक मानने छैक ।
मनुस्मृति तेसर अध्याय श्लोक ५ में लिखल छैक जे पितृकुल में सात पुस्ता तथा मातृकुल में पाँच पुस्ता सपिण्ड बाहर के असपिण्ड में विवाह सम्बन्ध करवाक चाहि । याज्ञवल्क्य स्मृति आचार–अध्याय श्लोक ५३ में मातृकुल में ५ पीढि सँ उपर एवं पितृकुल में सात पीढि सँ उपर में विवाह करवाक चाहि । लेकिन अन्य ऋषिगण के कथन छैन्ह जे पितृकुल के सात पुस्ता बाहर असपिण्ड सेहो सगोत्र होइत छैक, सगोत्र में विवाह नहिं करक चाहि । धर्मसिन्धू तृतीय परिच्छेद पूर्वाद्ध भाग तेसर सपिण्ड निर्णय में लिखल छैक जे वर तथा कान्या के दूरस्थ पुरुष में आदि सँ सातम तथा मूल पुरुष में पाँचम होइ त सपिण्ड निवृत होइत छैक । महर्षी दयानन्द सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश में सगोत्र आ मातृकुलक पाँच पुस्ता अन्तर्गतक विवाह के निषेध कहने छथिन्ह । सपिण्ड अर्थात स्त्री–पुरुष के समागम सँ उत्पन्न जीव अंश, अर्थात जगmबल नभलभतष्अक ।
कर्ण कायस्थक मूल आ गोत्र ः–
मैथिल करण कायस्थक पाञ्जिक सर्वेक्षण पुस्तक में मेजर विनोद बिहारी वर्मा लिखने छथिन्ह जे मैथिल करण कायस्थक पाञ्जी में हमरा गोत्रक उल्लेख कतहु नहिं भेटल, पञ्जीकार सभ में एहि विषय पर मत विभिन्न्ता छैन्ह । कतेको पञ्जीकार कायस्थ के विभिन्न गोत्र होयब मानैत छथिन्ह । त किछु सम्पूर्ण कायस्थ के चित्रगुप्त गोत्र मध्य मानैत छथिन्ह । आसामी कायस्थ में विभिन्न गोत्र छैक तेकर उल्लेख श्री हरिनारायण दत्त बरुवा अपन पोथी कामरुपीय कायस्थ समाजेर इतिवृत्त पुस्तक में कयने छथिन्ह । ओहि पोथी में बलायिनी मूल के आदि पुरुष मङय दासक गोत्र राढ में अत्रि, कोच विहार में वशिष्ठ तथा मिथिला में काश्यप लिखल गेल छैक ।
जनकपुर निवासी स्व. पञ्जीकार विश्वनाथ मल्लिकद्वारा लिखित वि.सं. २०५४।०४।०१ तदनुसार १६ जुलाई १९९७ ई. में प्रकाशित मिथिला दर्पण पुस्तक में कर्ण कायस्थ के ८१ मूल के लेल ३१ टा गोत्र उल्लेख कयने छथिन्ह ।
सन् २००८ ई (वि.सं. २०६४।६५) में प्रकाशित श्री कमलधर दासद्वारा लिखित मैथिल कर्ण कायस्थक गोत्र, प्रवर, मूल आ वैवााहिक सम्बन्ध पुस्तक में कमलाकर भट्ट रचित ग्रन्थ ‘सुकमलाकर’ आ बाबु असर्फि लाल (गन्धवारी) पञ्जीकारक प्रपितामहक पाञ्जी सँ लेल मङ्गलाचरण, गोत्राध्याय–प्रवराध्याय पर आधारित वाक्यांश उल्लेख करैत कर्ण कायस्थक कुल ३१ गोत्र आ ८१ मूल लिखने छथिन्ह ।
अप्रिल २०१३ ई में प्रकाशित डा. मालती लालद्वारा लिखित पुस्तक ‘मिथिला ओ मैथिलिक विकास में कर्ण कायस्थक योगदान’ में वैद्यनाथ लाल दासक लिखित पुस्तक गोत्र एवं प्रवर के उद्धृत करैत विभिन्न गोत्र संगे ८१ मूल उल्लेख कयने छथिन्ह ।
मैथिल कर्ण कायस्थक मूल–गोत्र–प्रवर एवं विवाहक विध व्यवहार पुस्तक में श्री सच्चिदानन्द लाल दास ३१ गोत्रक उल्लेख कयने छथिन्ह ।
श्रोत सन्दर्भ कमलाकर भट्ट कृति के उल्लेख प्रायः सभ लेखक महानुभाव कयने छथिन्ह । एकरे आधार पर विभिन्न पत्र–पत्रिका में तथा सामाजिक सञ्जाल में गोत्रक प्रचार प्रसार भऽ रहल छैक । ३१ गोत्र में ८१ मूल उल्लेख भेल विषय अनुसार एके गोत्र में अनेक मूल छैक, अहिपर कतहु विश्लेषण नहिं भेल छैक । उदाहरण के लेल शाण्डिल्य गोत्र में तीन मूल बलाईन, नरहरी, रजेडापाल छैक । वत्स गोत्र में नरङ्गवाली, सहोरा, घाँसीपाल ताहिना आङ्गिरस गोत्र में शिशव, कोडारी तथा बडहरी ।
पञ्जी निर्माणक अवधि आ प्रस्तुतिकरण ः–
कर्ण कायस्थक पञ्जी निर्माणक आदेश तिरहुत नरेश हरसिंहदेवद्वारा सन् १३१० ई. में शिशव मूल वंशक विजी पुरुष देवी दासक छठम् पुस्ताक वंशज हुनकर राजसभा के विद्वान एवं सक्षम व्यक्तित्व शङ्करदत्त (मल्लिक) के जिम्मेवारी देने रहथिन्ह । शङ्करदत्त एहि कार्य में सहयोगक लेल अपन भागिन मोहीनवार मूल वंशके गुणपति के सहायता सँ सन् १३२७ में कार्यभार सम्पन्न कयलखिन्ह । ओकरा सन् १३५२ ई. धरि विभिन्न पञ्जीकारद्वारा नकल तयार कयल गेलैक ।
पञ्जी निर्माण कार्य सम्पन्न होमय सँ पूर्वहि हरसिंहदेव के सन् १३२४ ई. में पलायन करय पडलैन्ह । हरसिंहदेव के पलायन के बाद गयासुद्दीन तुगलक तिरहुत शासन मलीक तुल्लिधरक पुत्र अहमद खाँ के सौंप देलकैक । मध्यवर्तीकाल में तिरहुत में मुसलमान विजेता तथा ओकर क्रुर राज्यपालके छोडी कऽ अन्य कोनो वास्तविक आ वैधानिक राजा या शासक नहिं छलैक । करिब ३० वर्ष धरि तिरहुतक राजनीतिक मञ्चपर अराजकता तथा नृशंसताक ताण्डव होइत रहलैक । अराजकता के ओही कालखण्ड में पञ्जी निर्माण में आबद्ध महापुरुष सभ व्यक्ति के प्रशंसा, आभार आ धन्यवाद दयवाक चाहि ।
पश्चात् दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलकद्वारा सन् १३५३ ई. में हरसिंहदेवक राजसभा में रहल सभा पण्डित ओइनवार वंशक कामेश्वर ठाकुर के नियुक्त कयलकैक । करद राज्य मिथिला–तिरहुत आन्तरिक मामिला में स्वायत्त छलैक, परन्तु वाह्य कार्यक्षेत्र में दिल्ली शासक के अधिन ।
कर्णाटवंशीय क्षत्रीय राजा सँ ओयनवार वंशीय ब्राह्मण शासक धरि सवर्ण कर्ण कायस्थ लोकनि ठक्कुर–ठाकुर कहवेत छलाह, अखनो सिध्यान्त–विवाहक समय ठक्कुर कहल जाईत छैक, मुदा ओइनवार वंशक ब्राह्मण शासक के समय में ब्राह्मण आ कायस्थ के रहन–सहन, आचार–विचार आ पद्धति एके प्रकारक देखि असङ्गत बुझेलैन्हि विचारोपरान्त कायस्थ लोकनिके ठाकुर पद्धति हटा देल गेलैक । जेकरा जाहि विषय में निपुण आ कार्यरत पाओल गेलैक ताहि अनुरुप हुनका लोकनिके उपाधि–उपनाम दऽ देल गेलैक । राज्याश्रित रहला कारणे कायस्थ लोकनि के स्वीकार करय पडलैन्ह ।
हरसिंहदेवक पलायन पश्चात पञ्जी निर्माण सम्पन्न भेलैक । हुनका समक्ष प्रस्तुत भेल रहितैक त सम्भवतः धार्मिक आधार पर गोत्र आदि विवरण सेहो सम्भवतः समावेश भऽ गेल रहितैक । परन्तु ई हुनकर पलायन पश्चात् ओइनवार शासक समक्ष कार्यान्वयन के लेल प्रस्तुत भेला पर कि भेलैक से स्पष्ट नहिं छैक ।
पश्चात् मिथिला दरभङ्गा के खण्डवा ब्राह्मण जमिन्दार अन्तिम शासक कामेश्वर सिंह के समय तक पञ्जी प्रवन्धक अध्ययन–अध्यापन होइत छलैक आ परिक्षोत्तिर्ण भेला पर पञ्जिकारक उपाधि अधिकार आ वृत्ति देल जाइत छलैक ।
सामाजिक रुपान्तरण ः–
मिथिला–तिरहुत क्षेत्र (नेपाल–भारत दुनु तरफ) में जमिन्दारी उन्मुलन के बाद पेशागत रुप सँ अधिकांश आश्रित मैथिल कर्ण कायस्थ समुदाय अकस्मात बेरोजगार भेला सँ परिवार पर आर्थिक सङ्कट आवि गेलैक । परिणामतः पेशागत स्वयं या हुनकर सन्तति के अन्य रोजगार के लेल विभिन्न स्थानपर जाय के लेल बाध्य होमय पडलैक । सकारात्मक ई जे अन्य स्थान पर गेला सँ तथा विभिन्न व्यक्ति– समूह–समुदाय सँ सम्पर्क भेला सँ रोजगार आ समृद्धि के लेल उच्च शिक्षा प्राप्त करवाक चेतना आ आकर्षण में वृद्धि भेलैक । आई लगभग सात दशक पश्चात् कर्ण कायस्थ समाज के तेसर चाडीम पीढि में बालक–बालिकाके शैक्षिक स्तर में गुणात्मक वृद्धि भऽ रहल छैक । उच्च शिक्षा के लेल विभिन्न स्थान, राज्य आ विदेश में सह–शिक्षा अध्ययनरत रहलापर अनेक जातीय–समुदाय के सहपाठी– सहकर्मी के साथ सम्पर्क, परिवेश, विचार आ भावना के आदान–प्रदान के साथे जिज्ञासा, समानता आ स्वावलम्बनक चाहना बालक–बालिका में उत्पन्न भऽ रहल छैक । पारम्परिक तरिका सँ हुनका सबहक विचार आ भावना के कुण्ठित आ नियन्त्रित केनाई अनुचित तथा कठिन भऽ गेल छैक । एकर परिणाम वैवाहिक संस्कार पर सेहो पडि रहल छैक ।
कर्ण कायस्थ समाजमें स्व–उपजातीय, अन्तरजातीय विवाहक प्रचलन बढि रहल छैक । विगत दु–तीन दशकमें एहन अन्तरजातीय भेला सँ जन्म भेल सन्तान उच्च शिक्षा प्राप्त विवाहयोग्य बालक– बालिका के रुप में समाज समक्ष प्रस्तुत भऽ गेल छैक, जे पञ्जी प्रबन्ध सँ बाहर छैक । विवाह प्रयोजन के लेल विभिन्न गोत्रक प्रयोग करवाक सन्दर्भ में मैथिल कर्ण कायस्थ समाजक अग्रज, विद्वतवर्ग एवं पञ्जीकार सबहक मत छैक जे अल्पसंख्यक मैथिल कर्ण कायस्थ समाजके ओहिना वैवाहिक सम्बन्धमें कठिनाई भऽ रहल छैक, विभिन्न मूल वंश के एके गोत्र प्रचलन भेला पर दायरा आओर संकुचित भऽ जयतैक, दायरा संकुचित केनाई उचित नहिं होयतैक, अतः दायरा बढयवाक प्रयास होयवाक चाहि । वर्तमान में भऽ रहल तीव्र सामाजिक परिवर्तन आ रुपान्तरण के सन्दर्भ में एहि विषयपर गहन– गम्भीर बहस आ विमर्शक आवश्यकता छैक ।
अन्त में,
१. मैथिल कर्ण कायस्थक पञ्जी निर्माण धार्मिक आधार पर सवर्ण के रुप में भेल छैक ।
२. गोत्र के निर्धारण के करतैक ? प्रथम हमरा सबहक पूर्वज, दोसर कूलगुरु, तेसर मूलवंशक जानकारी देनिहार पञ्जीकार, अन्तिम काश्यप गोत्र ।
३. वैदिक पद्धति अनुसार ॐ शब्द उच्चारण के साथ प्रारम्भ संस्कारगत–पूजन कर्मकाण्ड करयवाक लेल पुरोहित वर्गके प्रेरित कयल जाय ।
४. काश्यप गोत्र उच्चारण–प्रयोग में हीनताबोधक कोनो कारण नहिं छैक । बल्की सिद्धयान्त आ विवाह में गोत्र के साथ मूल के सेहो प्रयोग प्रचलन करयवाक चाहि ।
५. स्वमूल वंशक पितृकुल में यथासम्भव वैवाहिक सम्बन्ध नहिं करवाक चाहि, कम से कम सात पुस्ता अर्थात सपिण्ड अन्तर्गत में ।
६. एके माता के गर्भ सँ जन्म भेल सब सन्तान सहोदर (सह–उदर) कहबैत छैक । अतः प्रपितामहके सहोदर बहीनक सन्तान, ताहिना पितामह–पिता–स्वयं के सहोदर बहीनक सन्तान चार पुस्ता तक में विवाह सम्बन्ध नहिं करबाक चाहि ।
७. मातृकुल में प्रपितामही के सहोदर भाइ वा बहीनक सन्तान ताहिना पितामही–माता–पत्नी के सहोदर भाइ वा बहीनक सन्तान चार पुस्तातक में वैवाहिक सम्बन्ध नहिं करबाक चाहि ।
८. वर–कान्या के परस्पर सहमति आ समझदारी सँ विवाह में विहित सगूण, वस्त्र आ सम्मानजनक वस्तु के आदान प्रदान, व्यवहार होयवाक चाहि, परन्तु बाध्यतावश आ प्रतिष्ठाक नामपर कोनो प्रकारक तिलक–दहेज आ नगद के आदान–प्रदान अनुचित आ अशोभनीय छैक ।
९. विवाह जे कोनो पद्धति आ तरिका सँ भेल होईक, ओकर कानूनी वैधता के लेल सरकारी कार्यालय में तथा सम्बन्धित निकाय सँ पञ्जीकरण–वैवाहिक नाता प्रमाणपत्र शिघ्र अवश्य लेवाक चाहि ।
सन्दर्भ श्रोत सामग्री (निजी सन्दर्भ ग्रन्थ) ः–
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५. मनुस्मृति – अनुवादक पं. ज्वाला प्रसाद चतुर्वेदी (सरल हिन्दी अनुवाद सहित), रणधीर प्रकाशन, हरिद्वार, १९९३ ई. ।
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२८. सपिण्ड अर्थात पितृकुल में प्रपितामह, पितामह, पिता, व्यक्ति स्वयं, पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र समेत ७ पुस्ता, अविवाहित पुत्रीके पिता, पितामह, प्रपितामह तीन पुस्ता, विवाहित पुत्रीके पति तर्फक मात्र पिता तर्फक सपिण्ड नहिं होईत छैक (बृहत शब्दकोष – महेन्द्र संस्कृत विश्व विद्यालय) ।
२९. ठूलो थरगोत्र प्रवरावली, ले. पद्म प्रसाद उपाध्याय, प्रकाशक – गोरखा पुस्तक एजेन्सी, जङ्गभवण्डी वाराणसी ।
३०. वैदिक धर्म मूल रुपमा, ले. श्री शिवराज आचार्य “कौण्डिन्नायन”, स्वध्यायशाला, द्वितीय प्रकाशन, वि.सं. २०७५ ।
३१. ज्ष्लमग ःबचचष्बनभ ब्अत, १९५५ – भारत में गोत्र के उल्लेख नहिं छैक लेकिन सपिण्ड पितृकुल में पाँच पुस्ता तथा मातृकुल में तीन पुस्ता अन्तर्गत के विवाह के अवैध मानल गेल छैक ।
३२. मनुस्मृति में,
झल्लोमल्लश्च राजन्याद् व्रात्यान्निच्छिविरेव च ।
नटश्च करणश्चैव खसो द्रविड एव च ।।१०÷२१।।
(अर्थात, जे पुत्र व्रात्य क्षत्रीय सँ जन्मल होइत छैक ओकरा ‘झल्ल’, ‘मल्ल’, ‘निच्छिवि’, ‘नट’, ‘करण’, ‘खस’ आ ‘द्रविड’ कहल जाइत छैक ।)
वैदिक विद्वान श्री शिवराज आचार्य, कौण्डिन्नायन अपन पुस्तक “वैदिक धर्म मूल रुपमा” में व्रात्य के व्याख्या में लिखने छथिन्ह जे संस्कारविहीन परन्तु वर्णसाङ्कर्य रहित क्षत्रीय जाति के स्त्री–पुरुष सँ जन्म भेल सनातन सभ झल्ल, मल्ल, लिच्छवि, नट, करण, खस, द्रविड ई नाम सँ व्यवहृत भेल छैक ।