महाभूकम्प के तीन दिन बीत चुके थे । “मुझे कुछ खाने को दो,” आँगन में अचानक एक आवाज आई । “माँ इसे कुछ खाने को दे दो न. १ कब से मुहल्ले में घूम रही है” छोटे बाबा ने माँ को आवाज लगाई । माँ ने चिल्लाते हुए कहा, चल भाग यहाँ से, हिम्मत तो देखो इसकी सीधे आँगन में घुस आई है । “मुझे कुछ खाने को दे दो न,” उस लडकी ने फिर से मरियल आवाज में खाना माँगा । “अरे जाती है कि नहीं कि दे दू चार लात ।” दादी अपनी पूजा के घर से बोली “माँ इसे कुछ काम करने के लिए रख लो और कुछ खाने को दे दो न” छोटे बाबा ने उसके भूख से पिचके चेहरे को देख कर कहा । माँ ने पूछा, ये लडकी काम करेगी ? कौनसा काम कर सकती है, लडकी ने फिर से खाना माँगा और रोने लगी । अच्छा खाना देगें परन्तु तुमको घर के काम–काज करने होगें । साथ में माँ को वो बासी भात भी याद आ गए जो फेंकने के लिए रखे थे । दादी फिर बोल पडी, “अरे ई तो बहुत छोटी है, ये तो किसी काम की नही हैं ।” इतने में वो लडखडा कर गिर पडी । माँ फिर बोल पडी, ‘अरे देखो तो परमानेंट यहीं रहने का इरादा है । ये सुन सभी हँस पडे ’ उसने फिर से एक बार मरी हुई आवाज में खाना माँगा । बडी माँ फिर आगे आ कर बोली, “अरे काई चोर–डांकु की सिखाई हुई होगी । रात को दरवाजा खोल उनको भीतर बुला लेगी । इसे रोटी दो और दफा करो ।” देंगे न पहले आँगन तो सफा करा लें । ये कह माँ वही चौकी पर बैठ गई । परन्तु वो लडकी नही उठी । “देखो तो कैसी काम चोर है, काम का नाम सुनते ही अब उठ नही रही है” माँ ने कहा । इतने में छोटी बुआ हाथ में एक रोटी ले कर आई और बोली, “तुम लोग देखो मैं तमाशा दिखाती हूँ । कैसे ये फुर्र से उठती है,” कहते हुए वह रोटी उसके नाक के पास लाती है, परन्तु वो नही उठी । फिर उसे गरदन से उठाना चाहा फिर भीे नही उठी । उनको बहुत शर्मिन्दगी हुई । वो तमाशा नहीं दिखा सकीं ।